SANGEET KA SAFAR



kavita krishnamurthy brithday

गायिका कविता कृष्णमूर्ति
25 Jan को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.

कविता कृष्णमूर्ति की पृष्ठभूमि काफी अलग है. उनके मम्मी-पापा तमिलियन थे, लेकिन पड़ोसी बंगाली. दोनों परिवारों की दोस्ती गहरी थी. इतनी गहरी कि जब कविता के पापा को बड़ा घर मिला तो दोनों परिवार साथ रहने लगे. कविता के पिता ‘एजुकेशन एंड कल्चर अफेयर्स मिनिस्ट्री’ में थे. इस दोस्ती का असर कविता की परवरिश पर भी पड़ा. यहां तक कि वो अपनी पड़ोसी बंगाली आंटी को ‘मामुनी’ कहती थीं.

बंगालियों के यहां भी गीत संगीत का बहुत माहौल होता है और दक्षिण भारत में तो हर घर में संगीत किसी ना किसी तौर पर रहता ही है. लिहाजा संगीत तो कविता कृष्णमूर्ति को सीखना ही था. एक और दिलचस्प संयोग ये था कि कविता के पड़ोस में ही हेमा मालिनी रहा करती थीं, जो उन दिनों भरतनाट्यम सीख रही थीं. उनकी देखा देखी कविता को भी डांस क्लास में ले जाया गया लेकिन कविता ने जल्दी ही कह दिया कि वो डांस नहीं सीख सकती हैं.

कविता कृष्णमूर्ति का परिवार दिल्ली के कालीबाड़ी में रहते थे. पड़ोस की एक आंटी से संगीत सीखने की शुरूआत हुई. कुछ समय बाद ही मोहल्ले की दुर्गा पूजा में कविता को पहला ईनाम मिला. उस वक्त उनकी उम्र सात साल के करीब रही होगी. इसके बाद ही कविता कृष्णमूर्ति के लिए गुरू की तलाश शुरू हुई. उन दिनों बलराम पुरी थे, जो भारतीय महाविद्यालय में शास्त्रीय संगीत सिखाते थे. वो कविता को संगीत सीखाने को तैयार हो गए, शर्त बस एक थी-दो साल तक उन्हें कोई ये नहीं कहेगा कि कविता को भजन तैयार करा दीजिए. फिल्मी गीत तैयार करा दीजिए. बच्चों को यहां गाना है, वहां कॉम्पटीशन है. इस शर्त को कविता के परिवार ने मान लिया. तब जाकर गुरू जी ने बहुत प्यार से कविता को सिखाना शुरू कर दिया.

कविता अपने भाईयों के साथ खेलती रहतीं थी जब कान में मां की ये आवाज पड़ती थी कि- मास्टर जी आ गए. इस आवाज को सुनते ही कविता और उनके भाई खेल छोड़कर भागते थे. वो पहले आधे घंटे तानपुरा को ‘ट्यून’ करते थे. उसके बाद एक घंटे तक सिखाते थे. फिर कुछ गाना बजाना होता था. कविता इतनी छोटी उम्र में संगीत से जोड़े रखने का ‘क्रेडिट’ अपने गुरू जी को हमेशा देती हैं.

ये वो दौर था जब अलग अलग मंत्रालयों में भी संगीत की प्रतियोगिताएं हुआ करती थीं. कविता कृष्णमूर्ति ने ऐसी तीन प्रतियोगिताएं जीतीं. जब तक उनका स्कूल खत्म हुआ तब तक मामुनी को यकीन हो गया था कि वो गाना गा सकती हैं. ये उनका ही सपना था कि कविता गाने गाएं. पड़ोसी भट्टाचार्य अंकल रिटायर होने वाले थे, मामुनी ने उनसे कहा कि वो उन्हें और कविता को लेकर मुंबई चलें, वो कविता को हर हाल में ‘प्लेबैक सिंगर’ बनाना चाहती थीं.

शास्त्रीय बनाम पॉपुलर की बहस

लेकिन पापा ने कविता की मामुनी से कहा कि क्यों ना कविता को शास्त्रीय संगीत सिखाया जाए. शास्त्रीय संगीत को वो पॉपुलर संगीत से बेहतर मानते थे. उन्होंने मामुनी से यहां तक कहा कि अगर कविता शास्त्रीय संगीत सीखेगी तो फिल्मी संगीत से अच्छा और पढ़ा लिखा ‘क्राउड’ कविता को सुनने आएगा. लेकिन मामुनी तब तक सब कुछ तय कर चुकी थीं. उन्होंने साफ साफ कहा कि ये भले ही आपकी बेटी है लेकिन ये मेरी बेटी भी है और ये फिल्मी गाने ही गाएगी.

मुंबई पहुंचने के बाद कविता कृष्णमूर्ति ने सेंट जेवियर ज्वाइन कर लिया. वहां वो गाने लगीं. इसी दौरान कविता के भाई के कुछ दोस्त उनसे मिले, जो ‘एडवर्टाइजिंग’ की फील्ड में थे. ऐसे ही एक दोस्त थे विजय, जो गुरूदत्त के सबसे छोटे भाई थे. उन्होंने एक दिन कविता से कहा कि वो उनके लिए जिंगल्स गाएं. पहला जिंगल जो कविता कृष्णमूर्ति ने गाया उसे हिंदी में गीता दत्त ने गाया था.
कविता के कॉलेज में तमाम फिल्मी कलाकारों के बच्चे भी पढ़ते थे. अनगिनत लोग वहां मौके मौके पर चीफ गेस्ट बनकर आते रहते थे. कभी हेमंत कुमार जी आ रहे हैं, कभी वहीदा रहमान जी आ रही हैं. एक बार कॉलेज के एक कार्यक्रम में कविता कृष्णमूर्ति गा रही थीं. उस रोज अमीन सयानी और हेमंत कुमार चीफ गेस्ट थे. कार्यक्रम खत्म होने के बाद ही हेमंत दा ने कविता कृष्णमूर्ति को अपने साथ गाने का ‘ऑफर’ दे दिया. उसी रोज अमीन सयानी ने भी कविता कृष्णमूर्ति को सी. रामचंद्र के पास जाने को कहा था. सी. रामचंद्र ने कविता को सुनने के बाद कहा-तुम गाती तो अच्छा हो लेकिन मेरे पास 10 साल बाद आना. इस मायूसी के बाद जिंदगी का सबसे बड़ा लम्हा भी कविता की जिंदगी में आया. हुआ यूं कि हेमंत दा ने मन्ना डे को फोन किया.

हेमंत दा ने मन्ना डे से कहा कि वो एक ऐसी लड़की को जानते हैं जिसका बैकग्राउंड क्लासिकल म्यूजिक का है और वो मन्ना डे के साथ बहुत अच्छा ‘ड्यूएट’ गा सकती है. हेमंत दा ने कविता कृष्णमूर्ति को फोन करके पूछा कि वो अगले दिन क्या कर रही हैं. कविता से कहा गया कि वो एक दिन के लिए कॉलेज छोड़ दें और राजकमल स्टूडियो पहुंच जाएं. कविता जब स्टूडियो पहुंची तो सभी किसी का इंतजार कर रहे थे. थोड़ी देर बाद स्टूडियो का दरवाजा खुला और लता मंगेशकर अंदर आईं. उनको देखकर कविता की हालत खराब हो गई. कविता कृष्णमूर्ति की सरस्वती साक्षात उनके सामने खड़ी थीं. कविता को लगा कि वो सपना देख रही हैं. डर से रिहर्सल में कविता अपनी लाइन तक भूल गई. लता जी ने उनकी तरफ देखा और मुस्करा कर कहा- क्या हुआ तुम भूल गई या डर गई. कविता को जवाब नहीं सूझा. फिर उन्होंने ही हेमंत दादा से कहा अब फाइनल टेक करेंगे. ‘टेक’ हो भी गया. बाद में कविता कृष्णमूर्ति को पता चला कि वो बांग्ला फिल्म का गाना था.
इस तरह कविता कृष्णमूर्ति का माइक के सामने मेरा पहला गाना लता जी के साथ था. उस रोज कविता और उनकी मामुनी इतने खुश थे कि स्टूडियो से निकलने के बाद घर जाने की बजाए वो गलत रास्ते पर चले गए. इसके बाद 1980 का साल आया. इसी साल एक फिल्म बनी थी- मांग भरो सजना. उसका गाना था काहे को ब्याही विदेश जो कविता का पहला गाना फिल्म में रखा गया था. इसके बाद उन्होंने कुछ गाने डब भी किए. इसके बाद ‘प्यार झुकता नहीं’ फिल्म आई. कविता कृष्णमूर्ति ने लता जी के सारे गाने डब किए. फिल्म का जो आखिरी गाना था- तुमसे मिलकर ना जाने क्यों, जो फिल्म में एक बच्चे पर फिल्माया गया था. वो कविता कृष्णमूर्ति ने गाया. फिर मिस्टर इंडिया के गाने गाए.

इसके बाद की कहानी भारतीय फिल्म के इतिहास में दर्ज है. 1942-ए लव स्टोरी के गानों ने कविता को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया. व्यक्तिगत जीवन में कविता हमेशा कहती हैं कि एल बालासुब्रमियम के तौर पर उन्हें ‘रेडीमेड फैमिली’ मिल गई. उन्हें इस बात से भी कोई तकलीफ नहीं है भारत में भले ही वो बहुत बड़ा नाम हैं लेकिन दुनिया के तमाम देशों में लोग उन्हें कविता कृष्णमूर्ति की बजाए मिसेस बालासुब्रनियम के तौर पर ही जानते हैं. कविता कृष्णमूर्ति को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.