Ramadhan-ul-mubarak & Eid-ul-fitr, sangeet ka safar |
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surhall |
Oct 2 2008, 02:10 AM
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#1
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Dedicated Member Group: Angels Posts: 6799 Joined: 4-November 03 From: Toronto-Canada Member No.: 86 |
sangeet ka safar have happy
Ramadhan-ul-Mubarak & Eid-ul-Fitr to all dhall |
surhall |
Oct 3 2008, 01:24 AM
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#2
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Dedicated Member Group: Angels Posts: 6799 Joined: 4-November 03 From: Toronto-Canada Member No.: 86 |
sangeet ka safar today rec, this email on eid mubrak one my dost (brother) मेरे अल्लाह...बुराई से बचाना मुझको....इस दुआ के साथ ईद मुबारक Posted: 01 Oct 2008 10:57 PM CDT हिन्दयुग्म की हरदम ये कोशिश रही है कि हिन्दी को हौसला देने वाले नए चेहरे ढूंढें जाएँ.....नाज़िम नक़वी हिन्दयुग्म से जुड़ने वाली ऐसी ही हस्ती हैं...पिछले कुछ महीनों से वो हिन्दयुग्म की कोशिशों में अपना हाथ बंटाने को लेकर गंभीर थे......तो, हमने सोचा क्यूँ न ईद के मुबारक मौके पर उन्हें अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाए... परिचय के नाम पर यही कहना मुनासिब है कि पत्रकारिता को दुकानदारी न समझने वाले चंद बचे-खुचे नामों में एक हैं... आप भी ईद के मौके पर उनके इस आलेख को दिल में उतारिये और हिन्दयुग्म पर इनका स्वागत कीजिये.....आपकी टिप्पणियों का भी इंतज़ार रहेगा.... आप सबको ईद की मुबारकबाद....मुन्नवर जी का ये शेर याद आ रहा है.. "बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद, अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते.... " "तुम गले से आ मिलो, सारा गिला जाता रहे" ईद हमारी गंगा-जमनी तहज़ीब के उन ख़ास त्योहारों में से है जिन्हें सदियों से हम साथ मनाते आ रहे हैं। लेकिन 21वीं सदी के इस माहौल में चाहे ईद हो या दीवाली, सिर्फ़ रस्में अदा हो रही हैं। किसी शायर का ये शेर ऐसे ही हालात का आइना है – मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी। अब ये हालत है कि डर-डर के गले मिलते हैं।। इस घड़ी दिल दुआ मांगना चाहता है कि ऐ ऊपरवाले हम कुछ कम में भी गुज़ारा कर लेंगे लेकिन हमारी इस दुनिया को अपनी रहमतों की बस इतनी झलक दे दे कि जब कोई लिखने वाला किसी भी त्योहार पर लिखने के लिये क़लम उठाये तो ऐसे न शुरू करे जैसे ये लेख शुरू हुआ है। ईद विषय पर लिखने का आदेश है तो इरादा कर रहा हूं कि पाठकों को मुबारकबाद दूं और ईद के महत्व पर कुछ रौशनी डालूं लेकिन क्या करूं फिर हथौड़े की तरह एक शेर दिमाग़ पर वार कर रहा है। क़लम को मजबूर कर रहा है कि उसे भी 21वीं सदी के इस ईदनामे में जगह दी जाए । ये सियासत है मेरे मुल्क की अरबाबे-वतन। ईद के दिन भी यहां क़त्ल हुआ करते हैं।। गुज़रा हुआ ज़माना हो या पल-पल गुज़र कर इतिहास बनता ये वर्तमान,इसे जानने के लिये इतिहास की नहीं साहित्य की ज़रूरत है। क्योंकि साहित्य आम आदमी का इतिहास है, इसलिये जो शेर (शायरों के नाम मुझे मालूम नहीं वरना ज़रूर लिखता) दिमाग़ में कौंध रहे हैं वो शायद आप सबके सामने आना चाहते हैं मैं यही सोच के उनका माध्यम बन रहा हूं। ये सच है कि समाज कोई भी हो एक दिन का करिश्मा नहीं होता। सदियों में उसकी नींव मज़बूत होती है। यही हाल हमारी गंगा-जमनी तहज़ीब का भी है। किसी भी दूसरे देश में ईद और दीवाली को वर्गों में बांट कर देखा जा सकता है लेकिन हमारी परंपराओं में ये त्योहार किसी समुदाय का नहीं, हमारा है, हम देशवासियों का है। वो कहते हैं न कि जो चीज़ ख़ूबसूरत होती है उसे लोगों की नज़र लग जाती है। यही हो रहा है हमारी सांझी विरासत के साथ। इसे दुनिया की नज़र लग गई है। हमारी इसी दुनिया में ईद किस तरह होती रही है आइये शेरों के ज़रिये इसका लुत्फ़ उठाते हैं। आरंभ उस शेर से जिसमें ईद की अहमियत को मानवता के मूल्यों पर परखने का जज़्बा है- किसी का बांट ले ग़म और किसी के काम आयें, हमारे वास्ते वो रोज़े- ईद होता है।। होली ही की तरह ईद भी त्योहार है गले मिलने का। यक़ीन मानिये जादू की ये झप्पी न जाने कितने गिले शिकवे मिटा देती है। लेकिन जनाब, ख़ुशी के साथ ग़म की टीसें जब मिलती हैं तो दर्द का मज़ा दुगना हो जाता है। त्योहार तो उनका भी है जो बिरह की आग में जल रहे हैं। एक आशिक़ की सर्द आहों में ईद का ये मज़ा यूं सजता है। मुझको तेरी न तुझे मेरी ख़बर आयेगी। ईद अबकी भी दवे पांव गुज़र जायेगी।। ये तो बात है उनकी जिनकी क़िस्मत में मिलना नहीं नसीब लेकिन ऐसे भी आशिक़ कम नहीं जिनके लिये ईद का त्योहार उम्मीदों के पंख लगा के आता है। ज़रा मुलाहिज़ा कीजिये इनकी फ़रियाद- ये वक़्त मुबारक है मिलो आके गले तुम। फिर हमसे ज़रा हंस के कहो ईद मुबारक।। ये लीजिये ये आशिक़ साहब तो जल-भुन कर ख़ाक हुए जा रहे हैं। लगता है इनकी तमन्नाओं के पूरा होने का वक़्त अभी नहीं आया है- ब-रोज़े ईद मयस्सर जो तेरी दीद नहीं। तो मेरी ईद क्या, अच्छा है ऐसी ईद न हो।। या फिर ये शेर- जिनकी क़िस्मत में हो हर रोज़ सितम ही सहना। ईद, बतला कि तू उनके लिये क्या लाई है।। मुझे आज भी याद है कि मैं बचपन में प्रेमचंद की कहानी ईदगाह पढ़कर ख़ूब रोया करता था। हमीद के सारे दोस्त खिलौने ख़रीद रहे थे लेकिन हमीद को तो वो चिमटा ख़रीदना था जो उसकी मां के हाथों को जलने से रोक सके। इस शेर में भी एक ग़रीब के घर ईद की अगवानी देखिये- ईद आती है अमीरों के घरों में, बच्चों। हम ग़रीबों को भला ईद से लेना क्या है।। अब इतने शेरों में वो शेर कैसे कोई भूल सकता है जो ईद के दिन हर महफ़िल में किसी न किसी के मुंह से ज़रूर निकल पड़ता है- ईद का दिन है गले आज तो मिल लो जानम। रस्में दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।। ईद का दिन यक़ीनन सबकी ख़ुशियों का दिन है, उनके लिये तो और भी ख़ुशी का दिन है जिन्होंने 30 दिन तक संयम की परीक्षा दी है। लेकिन कुछ लोगों के लिये ख़ुशियों का ये दिन आम दिनों के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा जल्दी गुज़रता हुआ प्रतीत होता है, तभी तो किसी ने कहा है- ईद का दिन और इतना मुख़्तसर। दिन गिने जाते थे जिस दिन के लिये।। शेरों की ज़बानी हमारी ये गुफ़्तुगू आपको कैसी लगी। मेरी कोशिश तो यही थी कि आपको ईद से संबधित कुछ अशआर सुनाऊं और लुत्फ़अंदोज़ करूं। हो सकता है कि मेरी ये कोशिश बेकार चली गई हो लेकिन चलते चलते किसी का ये शेर आपको ज़रूर सुनाऊंगा, ऐसा लग रहा है जैसे शायर मेरे दिल की बात कह रहा है- हों मबारक तुमको ख़शियां ईद के मेरे अज़ीज़। जब किसीसे ईद मिलना याद कर लेना मुझे।। हिंदयुग्म के तमाम पाठकों और श्रोताओं को ईद की ढेरों मुबारकबाद, आईये एक नई शुरुवात करें इस मुबारक मौके पर सुनकर इस नात को जिसे गाया है एक नन्ही गायिका सिज़ा ने. अलामा इकबाल के लिखे इस कालजयी रचना को जगजीत सिंह ने अपनी एल्बम "क्राई फॉर क्राई" में भी शामिल किया था. इस दुआ का एक एक लफ्ज़ पाक है. सुनिए,महसूस कीजिये और दुआ कीजिये कि ये दुआ हिंद के हर युवा की दुआ बन जाए. नाज़िम नकवी. dhall |
nasir |
Oct 3 2008, 04:08 AM
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#3
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Dedicated Member Group: Members Posts: 3170 Joined: 22-April 06 From: Mumbai, India. Member No.: 5763 |
Thank you, Sir, for your Ramzan Id greetings.
We appreciate it. NASIR
Teri Khushi me.n Khush Tera banda khidmatgaar hai, Banda hoo.n mai.n Tera Tuu mera Parwardigaar hai. |
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