Geetkaar Anjaan, SANGEET KA SAFAR |
Geetkaar Anjaan, SANGEET KA SAFAR |
surhall |
Sep 18 2007, 01:43 AM
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Dedicated Member Group: Angels Posts: 6799 Joined: 4-November 03 From: Toronto-Canada Member No.: 86 |
HELLO SANGEET KA SAFAR TODAY I FORGET ABOUT GEETKAAR ANJAN WAS VERY GOOD. अंजान: रोते हुए आते हैं सब हंसता हुआ जो जाएगा पुण्यतिथि 13 सितंबर के अवसर पर मुंबई। जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी. मर के जीने की अदा जो दुनिया को सिखलाएगा वो मुकद्दर का सिकंदर जानेमन कहलायेगा.. महान शायर और गीतकार लालजी पांडेय उर्फ अंजान का अपनी जिंदगी के बारे में कुछ ऐसा ही नजरिया था। हिन्दी भाषा और साहित्य के करिश्माई व्यक्तित्व अंजान का जन्म 28 अक्टूबर 1930 को बनारस में हुआ था। बचपन के दिनों से ही उन्हें शेरो शायरी के प्रति गहरा लगाव था। अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए वह बनारस में आयोजित सभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। हालांकि मुशायरों में वह उर्दू का इस्तेमाल कम ही किया करते थे। जहां हिन्दी फिल्मों में उर्दू का इस्तेमाल एक पैशन की तरह किया जाता था वही अंजान अपने रचित गीतों में हिन्दी पर ही ज्यादा जोर दिया करते थे। गीतकार के रूप में उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1953 में अभिनेता प्रेमनाथ की फिल्म गोलकुंडा का कैदी से की। इस फिल्म के लिए सबसे पहले उन्होंने लहर ये डोले कोयल बोले.. और शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी.. गीत लिखे लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। इस बीच उन्होंने कई छोटे बजट की फिल्में भी की जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ। अचानक ही उनकी मुलाकात जी.एस.कोहली से हुई जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म लंबे हाथ के लिए मत पूछ मेरा है मेरा कौन.. गीत लिखा। इस गीत के जरिये वह काफी हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। लगभग दस वर्ष तक मायानगरी मुंबई में संघर्ष करने के बाद वर्ष 1963 में पंडित रविशंकर के संगीत से सजी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर आधारित फिल्म गोदान में उनके रचित गीत चली आज गोरी पिया की नगरिया.. की सफलता के बाद अंजान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंजान को इसके बाद कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। जिनमें बहारें फिर भी आएंगी, बंधन, कब क्यों और कहां, उमंग, रिवाज, एक नारी एक ब्रह्मचारी, हंगामा जैसी कई फिल्में शामिल हैं। इसके बाद अंजान ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे। अंजान के सिने कैरियर पर यदि नजर डाले तो सुपरस्टार अमिताभ बच्चन पर फिल्माए उनके रचित गीत काफी लोकप्रिय हुआ करते थे। वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म दो अंजाने लुक छिप लुक छिप जाओ ना..गीत की कामयाबी के बाद अंजान ने अमिताभ बच्चन के लिए कई सफल गीत लिखे जिनमें बरसों पुराना ये याराना.., खून पसीने की मिलेगी तो खाएंगे.., रोते हुए आते हैं सब.., ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना..,खइके पान बनारस वाला.. जैसे कई सदाबहार गीत शामिल हैं। अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर कल्याण जी आनंद जी का नाम सबसे ऊपर आता है। कल्याणजी आनंदजी के संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली। सबसे पहले इस जोड़ी का गीत संगीत वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म बंधन में पसंद किया गया। इसके बाद अंजान द्वारा रचित फिल्मी गीतो में कल्याणजी आनंदजी का ही संगीत हुआ करता था। इन दोनों की जोड़ी की फिल्मों में दो अनजाने 1976, हेराफेरी 1976, खून पसीना 1977, गंगा की सौगंध 1978, डॉन 1978, मुकद्दर का सिकंदर 1978, लावारिस 1981, याराना 1981, ईमानदार 1987, दाता 1989, जादूगर 1989, थानेदार 1990, आदि फिल्में शामिल है। वर्ष 1989 में सुल्तान अहमद की फिल्म दाता में कल्याणजी आनंद के संगीत निर्देशन में अंजान का रचित यह गीत बाबुल का ये घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। कल्याण जी आनंद जी के अलावा अंजान के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी, लक्ष्मीकात प्यारे लाल, ओ.पी. नैयर, राजेश रोशन, आर.डी.बर्मन प्रमुख रहे हैं। वही उनके गीतों को किशोर कुमार, आशा भोंसले, मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर जैसे चोटी के गायक कलाकारों ने अपने स्वर से सजाया है। अंजान ने अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कैरियर में लगभग 200 फिल्मों के लिए गीत लिखे। लगभग तीन दशकों तक हिन्दी सिनेमा को अपने गीतों से संवारने वाले अंजान 67 वर्ष की आयु मे 13 सिंतबर 1997 को हमसब को अलविदा कह गए। DHALL Attached image(s) |
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